दीवाली
लखनऊ - अपनी रोशनी की ही तरह बहुत तेज भी है यह त्योहार
तेज हर मायने में,
सड़क में रफ्तार से लेकर, घरों में रोशनी की होड़ तक
इस दिवाली
रेल की मेरी पहली यात्रा में,
इसकी तेजी को मैंने और करीब से देखा
चूंकि विवाह उपरांत यह मेरी पहली दिवाली रही,
अतः इस बार मैं इस त्योहार की तेजी की भीड़ व गवाह दोनों ही रही ।
दिवाली का त्योहार,
एक यात्रा भी है,
और दिवाली की यह यात्रा
स्वयं एक त्योहार भी ....
सच है,
यहाँ अलग भीड़ है,
हर व्यक्ति में....
आखिरकार दीवाली लोगों को घर जाने का बहाना दे रही है, जहाँ आज सब खो गए है....
यहाँ रेल यात्रा के वक्त भी एक त्योहार ही देखा मैंने, जहाँ असीम खुशियां थी वास्तव में...
लेकिन सच्चाई का एक और पहलू
कि अब त्योहार के बाद जब सब वापस अपने पहले स्थान को लौटे तो..
रोशन झालरों के उन्हीं उजालों मे वो रोशनी न दिखी...
वापसी में ये चमक दमक
मानों अब खत्म सी हो गई...
आज दीवाली का त्योहार किसी पर्व से ज्यादा अपनों के करीब रहने का एक मांगा हुआ बहाना ज्यादा हो गया है...
कितना गहरा है ये तथ्य कि..
इंसान सबके साथ रहकर भी खो गया है ।
- वंदिता
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